Sunday, 19 July 2015

शीर्षक: निवेदन

अरी माँ मेरी तू क्या सोचती है
क्यों मेरे बारे में तू बुरा बोलती है
मैं परछाई हूँ तेरी अभागन नहीं
मैं बसंत बनूँगी बरसता सावन नहीं
जरा सी मेरी किलकारी खिल जाने दे
तेरे गर्भ से बाहर की दुनिया मुझे मिल जाने दे।

माना कि तुझे भविष्य की उलझनें खाए जा रही है
बेटी की परवरिश की चिंता सताए जा रही है
पर मेरा तुझसे ये वादा है माँ
सिर्फ वादा ही नहीं पक्का इरादा है माँ
सिर्फ तेरे सर का बोझ नहीं बनूँगी
होगा गर्व मुझ पर, कुछ ऐसा करुँगी
अपने आँगन में मेरी चहक तो खिलखिलाने दे
तेरे गर्भ से बाहर की दुनिया तो मुझे मिल जाने दे।।

देखी होगी तूने लक्ष्मीबाई की ललकार को
सुनी होगी तूने इंदिरा गाँधी की जयकार को
जानती होगी तुम मदर टेरेसा महान को
सराही होगी तूने भी कल्पना चावला की उड़ान को
मुझमें भी तो ऐसी ही दिव्य ज्योति है माँ
कुछ बनने, कर गुजरने की शक्ति है माँ
अपनी गोद में सितारों सा जरा झिलमिलाने दे
तेरे गर्भ से बाहर की दुनिया तो मुझे मिल जाने दे।।

     "अनंत" महेन्द्र