Friday 10 February 2017

ख़ुश्क मौसम, रात रूमानी

वो खुश्क मौसम था, वो रात रूमानी
थी।
वर्षों छिपा रखा था, वो बात बतानी थी।
कैसे इज़हार कर देता, जो उन्हें थी जल्दी।
चंद लफ्ज़ पड़ते कम, वर्षों की कहानी थी।
वो खुश्क मौसम था, वो रात रूमानी थी।।

खड़े अकेले दोनों,सफेद चादर के शामियाने में।
होते रहे असफल, एक-दूजे को समझाने में।
वक्त की थी पाबंदी, पर यूँ ही सारी रात बितानी थी।
न कह पाया वो बात, जो उसे बतानी थी।
वो खुश्क मौसम था,वो रात रूमानी थी।

विरह की घड़ी टिकटिक चल रही थी।
हृदय में भावनाओं की धारायें उमड़ रही थी।
तभी लाल सुर्ख जोड़े में दौड़ जाना पड़ा उसे।
स्वयं के हृदय को आघात लगा, हृदय छोड़ जाना पड़ा उसे।
फिर अश्रू की धार, और एक अधूरी कहानी थी।
न वो खुश्क मौसम था, अब न रात रूमानी थी।

          अनंत महेन्द्र©®