Thursday 9 June 2016

तन्हाई

कहाँ गए
वो पल कहाँ गए
जिनमें महक थी
तेरी मौजूदगी की

कहाँ गए
वो जज्बात कहाँ गए
जिनमें भाव थे,
उद्विग्नता थी

कहाँ गए
वो एहसास कहाँ गए
जिनमें जिंदगी थी,
संजीदगी थी

अब तो बस
आडम्बर है
मुखौटे हैं
चहुँ ओर

और है सर्वव्याप्त
एक खालीपन
सूनापन,
कहाँ गए
वो मंजर-ए-जमात कहाँ गए..
         "अनंत"