Tuesday 1 August 2017

कश्मीर की झाँकी

एक दिन मेरे कमरे में
  घुस गए साँप चार..
कश्मीरी पण्डितों सा
  बाहर निकला परिवार..
इसी बीच बहुत से लोग
   जमा हो गए..
आनन फानन में पुलिस
   और सेना इत्तला हो गए..

अब मैं खुश था कि सेना
  पल भर में इनको भगा देगी..
पर पशुप्रेमी मंत्री ने चेताया कि
  चली गोली तो केस लगा देगी..
मजबूरन बन्दूक फेंक
  सेनावाले ढेला चलाने लगे..
भागे नहीं साँप, जहर फेंकने को
  अपना फन फैलाने लगे..

बोले कुछ पड़ोसी भाई
  इनको क्यों भगा रहे हो..
छोटी सी बात का यूँ
  बतंगड़ क्यों बना रहे हो..
चंद घण्टे में ही बात, वन की
  ज्वाला सी फैलने लगी..
तेजी से चलने वाले दस
  चैनलों में खबर चलने लगी..

कहने लगे मीडिया वाले,
  जहर नहीं, साँप भी देखो..
बिंदी वाली संगठन बोली,
  मानवाधिकार तो सीखो..
इतने में एक सिपाही ने
  पैलेट गन चला दिया..
मारा गया था अभी एक ही साँप
  घटना ने पूरा संसद हिला दिया..

एक विपक्षी नेता ने संसद में
साँपो की व्यथा-कथा सुनाई..
थोड़े दिनों पश्चात् ही सर्वोच्च
  न्यायालय ने भी सहमति जताई..
मैं बेबस, असहाय यूँ ही
  घर के बाहर खड़ा रहा..
और मेरे स्वर्ग से आशियाने में
  साँप कुण्डली जमाये पड़ा रहा..

इतने में जो मेरा पड़ोसी मेरे
  घर पर नजरें जमाये बैठा था..
आ गया साँपों से मिलने, हाथों में
  मेढ़क और दूध का कटोरा था..
झाँसा मिला मुझे, अब मेरा घर
  उसी पड़ोसी के कब्जे में था..
नेताओं ने दी उसे ही शाबाशी,
  मैं निरीह तो बस सदमे में था..

हताश-निराश पछताता मैं
अनवरत दिन-रात रोता..
न देखने पड़ते ये दिन, ग़र सांपों को
खुद लाठी से कुचला होता..
                   "अनंत" महेन्द्र

वृद्धाश्रम

जो कभी तुझे उंगलियाँ पकड़कर,
   सारी राह चलाता था।
तेरी छोटी-बड़ी ख्वाइशों के लिए,
   पूरे माह कमाता था।
जो खुद कभी भूखा सो जाता पर,
  तेरे टॉफियाँ लाता था।
तेरी एक हँसी मुस्कान देखने,
थककर भी घर वापस आता था।

तेरे बीसियों एक से प्रश्नों के,
   जवाब वो हर बार देते थे।
तेरी हर जिद पूरी करने को,
   सर्वस्व वार देते थे।
जिसके हर एक शब्द में,
    कोई न कोई सबक होती है।
आज उनकी नेक सलाह भी,
    तुम्हें बकबक लगती है।

आज जब तुम खुद बड़े हो गए,
  पाँव पर अपने खड़े हो गए।
टूटी झोपड़ी अब मकान हो गया,
   पैसों पे तुम्हें अभिमान हो गया।
पिता के ईलाज के पैसों को,
    कहते हो नुकसान हो गया।

दो रोटी ही तो ज्यादा लगता है।
अरे वो तेरे बच्चों का दादा लगता है।
थोड़ा ही सही तुम ध्यान धरो।
उनके अनुभवों का सम्मान करो।
बस इतना ही तुम कर्म करो।
कि वृद्धाश्रम न फोन करो।
                   ©   अनंत महेन्द्र