Wednesday 24 May 2017

चलते-चलते

आज फिर मिल गयी चलते-चलते
आँख फिर झुक गयी चलते-चलते
यूँ मेरे सामने से ना गुजरे वो।
साँस न रूक जाए चलते-चलते।

आज फिर मिल गयी चलते-चलते
आँख फिर झुक गयी चलते-चलते
पल भर में मैं जी गया बरसों।
वक्त ही थम गया चलते-चलते।

आज फिर मिल गयी चलते-चलते
आँख फिर झुक गयी चलते-चलते
मेरा हर रोम-रोम गवाह होगा।
कैसे दिल मचल गया चलते चलते।

आज फिर मिल गयी चलते-चलते
आँख फिर झुक गयी चलते-चलते
पर तेरा मुझसे अजनबी बनना।
सब कुछ कह गया चलते चलते।
                   ©अनंत महेन्द्र

Monday 22 May 2017

जद्दोजहद

वापसी वाली ट्रेन में
दिखा एक मोची।
डिब्बे में आया-गया,
दो बार मंडराया,
फिर मेरे बगल वाली सीट में,
बैठ गया संकोची।
पतली काया, साँवला मुख,
हाथों में लकड़ी का बक्सा।
जूते पालिश वाला साजो सामान,
उसने सीट के नीचे रखा।
फटी कमीज, नीली धारी की लुँगी,
और खुद की चट्टी पुरानी।
मस्तक की रेखाओं में उसके,
शायद छिपी थी कोई कहानी।
मैं बैठा उसकी व्यथा-कथा को,
गम्भीरता से पढ़ने को अकुलाया।
तभी अचानक उसने गिनते हुए उंगलियों को,
मन ही मन बुदबुदाया।
गिनी ही थी कुल चार उंगलियाँ,
सर हिला उसने पुनः दुहराया।
अब उसका मलीन सा चेहरा,
मेरी दृष्टि अपनी ओर मोड़ रहा था।
शायद वो मन में दस-दस के चार नोट और,
घर के खर्चों का हिसाब जोड़ रहा  था।
                       © अनंत महेन्द्र

Saturday 20 May 2017

फिर तेरी याद..

रात स्याह है, विरह की आग है,
और नींदों में बनावट है।
कुछ आह है, कुछ आहट है,
कुछ नमकीन सी सुगबुगाहट है।

फिर गगन तन्हा रोशनाई से,
आँगन तेरी अंगड़ाई से।
तममय राह है, व्यर्थ सजावट है,
और नमकीन सी सुगबुगाहाट है।

दीवारें करुण है नमीं से,
दरख़्त ख़ामोश तेरी कमी से।
क्षण अथाह है, वक्त से अदावत है।
और नमकीन सी सुबगुहाट है।
           © अनंत महेन्द्र