कहाँ गए
वो पल कहाँ गए
जिनमें महक थी
तेरी मौजूदगी की
कहाँ गए
वो जज्बात कहाँ गए
जिनमें भाव थे,
उद्विग्नता थी
कहाँ गए
वो एहसास कहाँ गए
जिनमें जिंदगी थी,
संजीदगी थी
अब तो बस
आडम्बर है
मुखौटे हैं
चहुँ ओर
और है सर्वव्याप्त
एक खालीपन
सूनापन,
कहाँ गए
वो मंजर-ए-जमात कहाँ गए..
"अनंत"