वो खुश्क मौसम था, वो रात रूमानी
थी।
वर्षों छिपा रखा था, वो बात बतानी थी।
कैसे इज़हार कर देता, जो उन्हें थी जल्दी।
चंद लफ्ज़ पड़ते कम, वर्षों की कहानी थी।
वो खुश्क मौसम था, वो रात रूमानी थी।।
खड़े अकेले दोनों,सफेद चादर के शामियाने में।
होते रहे असफल, एक-दूजे को समझाने में।
वक्त की थी पाबंदी, पर यूँ ही सारी रात बितानी थी।
न कह पाया वो बात, जो उसे बतानी थी।
वो खुश्क मौसम था,वो रात रूमानी थी।
विरह की घड़ी टिकटिक चल रही थी।
हृदय में भावनाओं की धारायें उमड़ रही थी।
तभी लाल सुर्ख जोड़े में दौड़ जाना पड़ा उसे।
स्वयं के हृदय को आघात लगा, हृदय छोड़ जाना पड़ा उसे।
फिर अश्रू की धार, और एक अधूरी कहानी थी।
न वो खुश्क मौसम था, अब न रात रूमानी थी।
अनंत महेन्द्र©®
थी।
वर्षों छिपा रखा था, वो बात बतानी थी।
कैसे इज़हार कर देता, जो उन्हें थी जल्दी।
चंद लफ्ज़ पड़ते कम, वर्षों की कहानी थी।
वो खुश्क मौसम था, वो रात रूमानी थी।।
खड़े अकेले दोनों,सफेद चादर के शामियाने में।
होते रहे असफल, एक-दूजे को समझाने में।
वक्त की थी पाबंदी, पर यूँ ही सारी रात बितानी थी।
न कह पाया वो बात, जो उसे बतानी थी।
वो खुश्क मौसम था,वो रात रूमानी थी।
विरह की घड़ी टिकटिक चल रही थी।
हृदय में भावनाओं की धारायें उमड़ रही थी।
तभी लाल सुर्ख जोड़े में दौड़ जाना पड़ा उसे।
स्वयं के हृदय को आघात लगा, हृदय छोड़ जाना पड़ा उसे।
फिर अश्रू की धार, और एक अधूरी कहानी थी।
न वो खुश्क मौसम था, अब न रात रूमानी थी।
अनंत महेन्द्र©®
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 23 फरवरी 2019 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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ReplyDeleteखड़े अकेले दोनों,सफेद चादर के शामियाने में।
होते रहे असफल, एक-दूजे को समझाने में।....बहुत सुन्दर
सादर
फिर अश्रू की धार, और एक अधूरी कहानी थी।
ReplyDeleteन वो खुश्क मौसम था, अब न रात रूमानी थी।
बहुत खूब..........
आभार
Deleteबहुत शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteवक्त की थी पाबंदी, पर यूँ ही सारी रात बितानी थी।
ReplyDeleteन कह पाया वो बात, जो उसे बतानी थी।
प्रेम की अधूरी कहानी ...बहुत सुन्दर...।
आभार
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteआभार
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