गुमशुम था प्रसुप्त कभी
चहक की कमी सी थी..
आहत था हृदय और
चक्षुओं में नमी भी थी..
वेदना जब भर गया
आत्म-मन प्रखर हुआ..
ग्लानि का भाव त्याग
अंतरविश्वास शिखर हुआ..
जागृत होकर तम से
मृत हृदय स्पंदित हुआ..
चित्त अब उदित हुआ,
नवजीवन सृजित हुआ।।
"अनंत" महेन्द्र ©®
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