Friday 15 January 2016

संचरण

गुमशुम था प्रसुप्त कभी
चहक की कमी सी थी..
आहत था हृदय और
चक्षुओं में नमी भी थी..

वेदना जब भर गया
आत्म-मन प्रखर हुआ..
ग्लानि का भाव त्याग
अंतरविश्वास शिखर हुआ..

जागृत होकर तम से
मृत हृदय स्पंदित हुआ..
चित्त अब उदित हुआ,
नवजीवन सृजित हुआ।।
                                  "अनंत" महेन्द्र ©®

No comments:

Post a Comment