कभी कह नहीं पाए
हृदय की भावनाएँ
दबी रह गयी
हृदय ही हृदय में
नयन
झुके रहे
उठ नहीं पाए
तेरे नयनों के समीप
लफ़्ज
निकल नही पाए
काँपते अधरों से
वरना बिखर जाते
इधर-उधर
इल्तजा
बस इतनी सी
है तुझसे
कभी समझ भी जाओ
इन अनकही
लफ्जों को
और दे दो
अर्थ
की परिपूर्ण
हो जाए हर
लफ़्ज..
अनंत महेन्द्र©®
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