Friday, 30 August 2019

ग़ज़ल अनंत महेन्द्र

ग़ज़ल

किनारे का समंदर से भला ये फासला क्या है!
डुबा पाए न राही को सफ़र का रास्ता क्या है!

नया सा शौक लगता है तभी वो दर्द सुन लेते।
जरा पूछो उन्हें गीतों से मेरे वास्ता क्या है!

तुम्हारी लत नहीं अब छोड़ सकता छोड़ दूँ दुनिया ।
तुम्हीं से पूछता हूँ तुम बताओ मशवरा क्या है!

किए वादे निभाओ तब नया वादा बताओ फिर।
किया वादा अभी तोड़ा नया फिर वायदा क्या है!

फ़िकर तुम छोड़ दो मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा।
मुहब्बत के नशे में हूँ, अज़ी फिर मयकदा क्या है!

मुसलसल चाहना तुझको अगर ये पाप है कह दो।
भला खाते में मेरे अब तलक का कुल जमा क्या है!
               
                                             अनंत महेन्द्र
ANANT MAHENDRA
ग़ज़ल

रंग सारे फिज़ा के तुम्हीं से बने, ये महावर की लाली कहे न कहे।
साँझ ढल कर बताती है नाराज़गी, चेहरे की उदासी कहे न कहे।

रंग स्याही का छूकर ही मज़मून तुम, पढ़ सके क्या जो माँ कह न पाई कभी।
जज्ब बातें दिलों में दबाए रही, उनको कागज की चिट्ठी कहे न कहे।

नींव में थीं जो ईंटें दरकने लगीं, पर इमारत बुलन्दी को छूती रही।
कश्तियाँ तेज लहरों में खेता रहा, दर्द छालों का माझी कहे न कहे।

लड़कियाँ हैं हया की चुनर ओढ़ती, उनके चेहरे में लिक्खा रहेगा ग़मी।
भाँप लेना पिता तुम मुसीबत ख़ुदी, ख़ुद से आकर के बेटी कहे न कहे।
                                           ✍️  अनंत महेन्द्र