हमने सूनी नज़्में सारी रातों में लिख डाली।
जज्बातों की किस्मत बातों बातों में लिख डाली।
युग-युग से जो अक्षर-अक्षर थे मन के कोने में।
अश्रु की बूंदों से उसके हाथों में लिख डाली।
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मुखमंडल को देखा मैंने, आभा देख नहीं पाया।
क्षण में जाने कहाँ गयी वो, ज्यादा देख नहीं पाया।
राह भटककर केश झटककर, एक पता पूछा मुझसे।
आँखों में उलझा बैठा मुख सारा देख नहीं पाया।
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प्रेम के तन्हा सफर में यूँ अकेले चल रहे हैं।
हम अमावस में किसी जूगनू की भाँति जल रहे हैं।
हाथ अपना खींचकर रिश्ते से रिश्तों के शिखर पर,
चढ़ चुके वो हम हजारों की नज़र से ढल रहे हैं।
✍️ अनंत महेन्द्र
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