Thursday, 27 October 2016

कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों

कभी सोचा न था, जिऊँगा मोहब्बत को।
मेरा दिल भी पा लेगा, किसी की सोहबत को
पर हुआ एक दिन, ऐसा गजब दोस्तों।
कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।

क्या बताऊँ, उन नजरों का कैसा था जादू।
होश रहा न खुद की, दिल हुआ था बेकाबू।
हाय! हम पर हुआ था, क्या असर दोस्तों।
जब कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।

लिख डाली कितनी शायरियाँ, उनकी याद में।
जब उन्होंने कहा था मिलूँगी, कुछ दिन बाद में।
फिर एक-एक पल लगने लगा था, कहर दोस्तों।
जब कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।

अब तो "अनंत" बस उनका एहसास ही बाकि है।
मिले न मिले वो, जीने को उनकी याद काफी है।
क्या करूँ काटने को दौड़ता है, शहर दोस्तों।
गहरी कर गयी चोट, बस वो नजर दोस्तों।।
                               "अनंत" महेन्द्र
                               २७/१०/२०१६

Saturday, 22 October 2016

रिश्ते

संबंधों की नींव पर
रिश्ते कर देते हो खड़े

स्व का अभिमान जब
दिखता है कंगूरे पर पड़े

थाह की टोह लगने लगती
गहराई कम जाती है

अंतस मन के दीवारों पर
रिश्तों की बेल सड़ जाती है
         
           © "अनंत" महेन्द्र
                १०.१०.२०१६

नारी स्वरूप को समर्पित

चित्त दीप्त, हृदय विकल
मृगमयी दृग,अधर कोंपल
अगाध उदधि अश्रुपूरित
मन ज्वाला सी उद्विलित
सारगर्भित अपरिभाषित
सदैव दात्री न्यून अभिलाषित
माँ, भगिनी, भार्या स्वरूप
हे नारी! नमन "अनंत" रूप
              © अनंत महेन्द्र
                २१.१०.२०१६