कभी सोचा न था, जिऊँगा मोहब्बत को।
मेरा दिल भी पा लेगा, किसी की सोहबत को
पर हुआ एक दिन, ऐसा गजब दोस्तों।
कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।
क्या बताऊँ, उन नजरों का कैसा था जादू।
होश रहा न खुद की, दिल हुआ था बेकाबू।
हाय! हम पर हुआ था, क्या असर दोस्तों।
जब कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।
लिख डाली कितनी शायरियाँ, उनकी याद में।
जब उन्होंने कहा था मिलूँगी, कुछ दिन बाद में।
फिर एक-एक पल लगने लगा था, कहर दोस्तों।
जब कर गयी चोट, बस एक नजर दोस्तों।
अब तो "अनंत" बस उनका एहसास ही बाकि है।
मिले न मिले वो, जीने को उनकी याद काफी है।
क्या करूँ काटने को दौड़ता है, शहर दोस्तों।
गहरी कर गयी चोट, बस वो नजर दोस्तों।।
"अनंत" महेन्द्र
२७/१०/२०१६
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