संबंधों की नींव पर रिश्ते कर देते हो खड़े
स्व का अभिमान जब दिखता है कंगूरे पर पड़े
थाह की टोह लगने लगती गहराई कम जाती है
अंतस मन के दीवारों पर रिश्तों की बेल सड़ जाती है © "अनंत" महेन्द्र १०.१०.२०१६
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