रात स्याह है, विरह की आग है,
और नींदों में बनावट है।
कुछ आह है, कुछ आहट है,
कुछ नमकीन सी सुगबुगाहट है।
फिर गगन तन्हा रोशनाई से,
आँगन तेरी अंगड़ाई से।
तममय राह है, व्यर्थ सजावट है,
और नमकीन सी सुगबुगाहाट है।
दीवारें करुण है नमीं से,
दरख़्त ख़ामोश तेरी कमी से।
क्षण अथाह है, वक्त से अदावत है।
और नमकीन सी सुबगुहाट है।
© अनंत महेन्द्र
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