मुक्तक:
जहर जो जातिवादी घुल रहा अपने बसर में भी
जला देगा बहुत है आग इसके इक असर में भी
सियासत जब लगे मिलने जहर के इन सपोलों से,
समझ लो आ गया मतदान अब अपने शहर में भी।
©अनंत महेन्द्र
मुक्तक:
सियासत ने अगर दी मात तो स्वीकार कर लेना।
कहीं टूटा अगर विश्वास तो इसरार कर लेना।
मगर गहरे हुए जो घाव तो चुपचाप ना रहना।
कलम की धार जिंदाबाद तुम प्रतिकार कर लेना।
© अनंत महेन्द्र
मुक्तक:
कहाँ को जा रहा इंसा कहाँ तक जा रहा इंसा
कभी इक दामिनी सी पुष्प को मुरझा रहा इंसा।
यहाँ बाबा मदरसे मौलवी के कर्म काले हैं।
अधर्मी बन चला हैवानियत को पा रहा इंसा।
©अनंत महेन्द्र
६/०१/२०१८
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