Tuesday, 20 March 2018

मुक्तक

मुक्तक:

अब न पनिहारिनें मटकी उठाती है।
ना वो कभी कपड़े सुखाने छत पे आती है।
नवजात गोद में है और हाथ में मोबाईल।
मॉडर्न तरीके से माएँ ममता लुटाती है।

दूजे माले में क्या हुआ, मुझको पता नहीं।
काका बगल के न रहे, मुझको पता नहीं।
एक वक्त था बस्ती में सबको जानता था मैं।
भाई का वक्त है बुरा, मुझको पता नहीं।

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